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जप माला नियम

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माला को कपड़े से ढके बिना या गोमुखी में रखे बिना जो जप किए जाते हैं वे फलते नहीं है ।
माला घूमाते वक्त तर्जनी  (अंगूठे के पास वाली ) अंगुली माला को नहीं लगना चाहिए ।
सुमेरू का उल्लंघन नहीं करना चाहिए माला घूमाते घूमाते जब सुमेरू आए तब माला को उलट कर दूसरी ओर घूमाना प्रारंभ करना चाहिए ।
ध्यान रहे की नाभि के नीचे का पूरा शरीर अशुद्ध माना जाता है , अतः माला को घूमाते वक्त माला नाभि से नीचे नहीं लटकना चाहिए एवं भूमि का स्पर्श भी नहीं होना चाहिए ।
गोमुखी में माला रखकर घूमाते हुए जप किया जाए तो उत्तम है ।
सब प्रकार के जप में 108 दोनों की माला काम आती है रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम मानी गई है ।              जप 
जप की संख्या अपने ईष्ट देव या गुरु मंत्र में जितने अक्षर हो उतने लाख मंत्र जप करने से उसे मंत्र का अनुष्ठान पूरा होता है।
मंत्र जप हो जाने के बाद उसकी दशांश  संख्या में हवन करना होता है। हवन में हर मंत्रोचचार  के साथ अग्नि में आहुति देना होता है ।हवन का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण   भोजन कराना होता है ।
मान लो हमारा मंत्र एक अक्षर का है तो हमें अनुष्ठान करने के लिए एक लाख जप करना चाहिए 10000 हवन 1000 तर्पण 100  मार्जन 10 की संख्या में ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए ।
यदि हवन तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोजन करने का सामर्थ्य ना हो तो इसके बदले उतनी संख्या में अधिक जप करने से भी काम हो जाता है ।
अनुष्ठान के प्रारंभ में ही हर रोज की जप संख्या का निर्धारण कर ले । कुल कितनी संख्या में जप करने हैं और यह संख्या कितने दिनों में पूरी करनी है, इसका हिसाब निकाल कर एक दिन के जप की संख्या निकाले ।
कितनी मालाएँ करने से वह संख्या पूरी होगी यह देख ले ।
फिर हर रोज उतनी मालाएँ करें हर रोज समान संख्या में जप करें एक दिन में भी सुबह शाम रात्रि दोपहर की जब संख्या निश्चित कर दी जाए तो अच्छा है ।
लिखा हुआ पढ़ना ,मंत्र का अर्थ न जानना और बीच-बीच में भूल जाना यह सब मंत्र सिद्धि के अवरोध है ।
चलते फिरते, उठते बैठते, खाते पीते, श्वास के साथ यदि तुम मानसिक जप करते हो बिना माला के तो उसकी गिनती रखने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
जप मैं ना बहुत जल्दबाजी करना चाहिए और ना बहुत विलंब ।अनुष्ठान के दिनों में सात्विक भोजन करना चाहिए, हल्का और पौष्टिक भोजन करना चाहिए। मंत्र अनुष्ठान स्वयं करना चाहिए यह सर्वोत्तम है ।
जप अनुष्ठान चलता हो तो उन दिनों में बिल्कुल मितभाषी होना जरूरी है ,मतलब कम बोलना या मोन व्रत ले ।
अनुष्ठान के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
मंत्र जाप करते समय नींद आलस या मन इधर-उधर के विचारों में अगर भटके तो हमें उच्च स्वर से ओम का उच्चारण कर लेना चाहिए ।
जप करते वक्त छींक आ जाए ,जंभाई आ जाए ,खांसी आ जाए ,अपान वायु छूटे तो यह अशुद्धि है ।
वह माला नियत संख्या में नहीं गिन्नी चाहिए आचमन करके शुद्ध होने के बाद वह माला फिर से करनी चाहिए ।
आचमन के बदले ओम संपुट के साथ गुरु मंत्र सात बार दोहरा दिया जाए तो भी शुद्धि हो जाएगी ।
मंत्र जप में दृढ़ विश्वास होना चाहिए।

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